ओशो का उदय और पतन: दुनिया उन्हें क्यों डरती थी?

प्रस्तावना: कौन थे ओशो?
ओशो, जिनका असली नाम रजनीश चंद्र मोहन जैन था, भारत के एक अत्यंत विवादास्पद आध्यात्मिक गुरु थे। उनका जन्म 1931 में मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गांव में हुआ था। वे एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के धार्मिक, सामाजिक और नैतिक ढांचे को चुनौती दी।
जहाँ कुछ लोग उन्हें आध्यात्मिक क्रांतिकारी मानते हैं, वहीं दूसरों के लिए वे एक धार्मिक धोखेबाज़ या संप्रदाय प्रमुख थे। उनके विचार समाज की पारंपरिक नींव को हिला देने वाले थे—और शायद यही कारण है कि दुनिया उन्हें डरती थी।
ओशो के विचार खतरनाक क्यों माने जाते थे?
1. धर्मों की खुली आलोचना
ओशो ने किसी भी धर्म को नहीं बख्शा। उन्होंने हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध—सभी धर्मों की कड़ी आलोचना की और कहा कि धर्म इंसान को गुलाम बनाते हैं। उनके अनुसार, धर्म डर और अपराधबोध पैदा करते हैं।
2. स्वतंत्र सेक्स और प्रेम का समर्थन
उन्होंने “फ्री लव” और खुले संबंधों की वकालत की। उनके आश्रम में यौन संबंधों को लेकर कोई सामाजिक बंधन नहीं था। यह उस समय के लिए अत्यंत क्रांतिकारी और भारत जैसे देश में अस्वीकार्य था।
3. धन, विलासिता और शक्ति का प्रदर्शन
ओशो के पास 93 रोल्स-रॉयस कारें थीं, महंगे वस्त्र, महंगी घड़ियाँ और उनका जीवन अत्यधिक विलासिता से भरा था। आलोचकों ने इसे पाखंड कहा, जबकि ओशो ने कहा कि यह लोगों को “जागृत” करने की एक युक्ति है।
4. राजनीति और कानून से टकराव
उनकी अमेरिका में बनाई गई राजनीशपुरम कम्यून में सत्ता और कानून से सीधी टक्कर हुई। वहां 1984 में अमेरिका के इतिहास का सबसे बड़ा बायोटेरर अटैक हुआ—सलाद बार में सैल्मोनेला ज़हर मिलाया गया, जिससे 750 लोग बीमार हो गए।
राजनीशपुरम: सपना या साजिश?
1981 में ओशो अमेरिका चले गए और ओरेगन में एक विशाल संप्रदाय स्थापित किया। इस समुदाय का नाम था राजनीशपुरम, जहां हजारों अनुयायी रहते थे। उनके आदेश पर लोगों ने पूरे शहर को ही बदल दिया।
पर जल्द ही यह “स्वर्ग” कानूनी जाल और आपराधिक आरोपों में फंस गया।
उनकी सचिव मा आनंद शीला पर हत्या की कोशिश, वायरटैपिंग और जैविक हमले जैसे आरोप लगे। उन्हें अमेरिका में जेल हुई।
ओशो की गिरफ्तारी और निर्वासन
1985 में ओशो को अमेरिका से इमिग्रेशन धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार कर भारत भेजा गया। उसके बाद उन्होंने कई देशों में प्रवेश की कोशिश की, लेकिन लगभग 21 देशों ने उन्हें वर्जित कर दिया।
उनकी लोकप्रियता घटने लगी, अनुयायी बिखरने लगे, और उनका स्वास्थ भी तेजी से बिगड़ने लगा।
ओशो की रहस्यमयी मृत्यु: उन्हें किसने मारा?
ओशो की मृत्यु 19 जनवरी 1990 को पुणे में हुई। आधिकारिक कारण बताया गया—हृदयगति रुकना। लेकिन उनके अनुयायियों और कई विश्लेषकों का मानना है कि कहानी इससे कहीं ज्यादा गहरी है।
1. ओशो का खुद का दावा: “मुझे जहर दिया गया”
ओशो ने सार्वजनिक रूप से कहा था:
“अमेरिकी सरकार ने मुझे जेल में जहर दिया। मैं धीरे-धीरे मर रहा हूं।”
उन्होंने कहा कि उन्हें धीमे ज़हर दिए गए जिससे उनकी हड्डियां और शरीर टूटने लगे।
2. कोई पोस्टमार्टम नहीं हुआ
इतनी बड़ी और विवादास्पद शख्सियत की मौत के बाद भी कभी पोस्टमार्टम नहीं किया गया। यह बहुतों के लिए एक बड़ा सवाल बन गया।
3. अनुयायियों का आरोप: अंतरराष्ट्रीय साजिश
कुछ अनुयायियों का मानना है कि अमेरिका, भारत और अन्य सरकारों ने मिलकर ओशो को खत्म किया क्योंकि उनका प्रभाव एक खतरे के रूप में देखा गया।
हालांकि आज भी कोई ठोस सबूत मौजूद नहीं है, लेकिन संदेह और रहस्य आज भी बरकरार है।
विरासत: एक विभाजक प्रभाव
ओशो आज भी चर्चा में हैं—उनके पुणे स्थित आश्रम में हर साल हजारों अनुयायी जाते हैं।
उनकी किताबें 60 से अधिक भाषाओं में छपी हैं।
Netflix की डॉक्यूमेंट्री “Wild Wild Country” ने उन्हें फिर से दुनिया की नजर में ला दिया।
कुछ लोग उन्हें आज भी जागृति का पुजारी मानते हैं, तो कुछ के लिए वे बस एक शातिर संप्रदाय नेता थे।
निष्कर्ष: ज्ञान या भ्रम?
ओशो का जीवन और मृत्यु एक जटिल पहेली है।
वे समाज को चुनौती देने आए थे, और उन्होंने सच में धर्म, रिश्ते, सेक्स, धन और सत्ता के हर पहलू को नए नजरिए से देखा।
लेकिन क्या उन्होंने दुनिया को रोशनी दी या भ्रमित किया?
क्या वे किसी सरकार द्वारा मारे गए या अपने ही कर्मों के शिकार हुए?
इसका उत्तर शायद कभी न मिले।
पर इतना निश्चित है—ओशो साधारण नहीं थे।
उन्होंने दुनिया को हिला दिया… और इसीलिए दुनिया उन्हें डरती थी।